लेखनी कविता -रचनहार कूं चीन्हि लै, खैबे कूं कहा रोइ

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रचनहार कूं चीन्हि लै, खैबे कूं कहा रोइ । दिल मंदिर मैं पैसि करि, ताणि पछेवड़ा सोइ ॥1॥ भावार्थ - क्या रोता फिरता है खाने के लिए ? अपने सरजनहार को ...

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